माता शैलपुत्री अपने पिछले जन्म में राजा दक्ष के यहां बालिका रूप में हुई थी। सती बचपन से ही भगवान शिव से मोह करती थी।

राजा दक्ष भगवान शिव के कट्टर विरोधी थे, क्योंकि शिव जी ने दक्ष के पिता भगवान ब्रह्मा को युद्ध में पराजित किया था। 

प्रजापति दक्ष की आज्ञा के विरुद्ध माता सती ने वैरागी शिव से विवाह कर लिया। जिससे प्रजापति दक्ष अत्यंत क्रोधित हुए। 

सतिशिव विवाह के बाद दक्ष ने एक यज्ञ के आयोजन में भगवान शिव को तिरस्कृत किया, जिसे माता सती सहन न कर सकी। 

सती ने यज्ञग्नि में स्वयं को दहन कर लिया। इसके बाद उन्होंने पर्वत राज हिमालय के घर शैलपुत्री के रूप जन्म लिया। 

शैलपुत्री ने पुनः भगवान शिव से विवाह कर अपना घर बसाया। तब से ही नवरात्रि के पहले दिन माता शैलपुत्री की पूजा की जाती है। 

नंदी की सवारी करने वाली माता शैलपुत्री का शुभ रंग नारंगी है, और एक हाथ में कमल व दूसरे में त्रिशूल विराजमान है। 

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