नवरात्र में स्कंदमाता की पूजा का भी विशेष महत्व होता है। आइए क्रमानुसार उन्हे जानते हैं---
पृथ्वी लोक में ताड़कासुर का आतंक बहुत बढ़ गया था, जिसका अंत करने के लिए भगवान कार्तिकेय का जन्म हुआ
देवों के सेनापति कार्तिकेय भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र थे और उन्हें षडानन या स्कंद नाम से भी जाना जाता था
भगवान स्कन्द की माता होने के कारण देवी माँ का नाम स्कंदमाता पड़ा। स्कन्दमाता ने ही कार्तिकेय को ताड़कासूर से युद्ध के लिए शिक्षा दी थी
चार भुजाओं वाली स्कंदमाता सदैव कमल पर विराजित रहती है, जिसके कारण इन्हें पद्मासना देवी भी कहा जाता है
नवरात्रि के पांचवें दिन पीले वस्त्र पहनकर देवी को पीला चंदन, पीली चुनरी, पीली चूड़ियां, पीले फूल अर्पित करें
सूर्यमंडल की अधिष्ठात्री और शेरों पर सवार माता के हाथों में वरमुद्रा और कमल पुष्प सुशोभित रहते हैं
स्कंदमाता की उपासना से भक्त की इच्छाएँ पूर्ण होती हैं और मृत्युलोक में ही उसे परम शांति का अनुभव होने लगता है
माता का श्लोक -
सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया |
शुभदाऽस्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी ||
माता कुष्मांडा ससे हुई थी ब्रह्मांड की उत्पत्ति
माता कुष्मांडा