सूर्य मंडल के भीतर निवास करने वाली माता कुष्मांडा ने ही ब्रह्मांड की रचना की थी

शेरों पर सवार माता कुष्मांडा की आठ भुजाएं जिस कारण देवी को अष्टभुजा के नाम से भी जाना जाता है

इनके आठ हाथों में क्रमशः कमंडल, धनुष, बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, जप माला, चक्र तथा गदा शोभित है।

अनाहत चक्र में माता कुष्मांडा की पूजा उपासना की जाती है जिससे भक्तों की रोग दोष व शोक से मुक्ति होती है

मां कूष्मांडा की पूजा से बुद्धि का विकास होता है और जीवन में निर्णय लेने की शक्ति बढ़ती है।

अपनी मंद हंसी द्वारा संपूर्ण कूष्मांडा को उत्पन्न करने के कारण इन्हें कूष्मांडा देवी के नाम से जाना जाता है

पूजा के दौरान देवी को पूरे मन से फूल, धूप, गंध, भोग चढ़ाएं। चाैथे नवरात्रि में देवी मां को मालपुए का भोग लगाना चाहिए

नवरात्रि के तीसरे दिन होती है  माता चंद्रघंटा की पूजा