Chandrayaan 3 India’s Pride : भारत के वैज्ञानिकों ने एक बार फिर अंतरिक्ष विज्ञान में अपनी शक्ति का बखूबी प्रदर्शन किया। इसरो द्वारा निर्मित चंद्रयान-3 ने चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सफलतापूर्वक सॉफ्ट लैंडिंग कर इतिहास रच दिया है यह पहली बार है जब दुनिया के किसी भी देश ने चांद के दक्षिणी ध्रुव में सॉफ्ट लैंडिंग किया हो हालांकि इससे पहले अमेरिका और रूस में कई मून मिशन किए हैं लेकिन वे सभी भूमध्य रेखा के आसपास ही उतरे थे और काफी अधिक लागत से बने हुए थे। पर भारत ने मात्र 615 करोड़ रूपए में ही सफलतापूर्वक चंद्रयान को लॉन्च करके उसकी सॉफ्ट लैंडिंग भी कराई।
चंद्रयान-3 की मुख्य विशेषताएं
Chandrayaan 3 India’s Pride : चंद्रयान-3 में कुल 6 पेलोड लगाए गए हैं जिसमे से दो पेलोड रोवर प्रज्ञान में तथा चार पेलोड लैंडर विक्रम में लगे हैं। जो सभी प्रकार खोज और अध्ययन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे।
रोवर प्रज्ञान
इसमें लगे दो एलिमेंट LABS और APXS मिलकर चांद की मिट्टी के रासायनिक गुण और वहां के पत्थरों की संरचना के बारे में पता लगाने का काम करेंगे।
लैंडर विक्रम
इसमें लगे सभी चार एलिमेंट अलग-अलग खोज के लिए लगाए गए है-
1. RAMBHA – यह लेजर बीम के माध्यम से चांद की सतह पर कुछ पत्थरों को पिघलाकर उनसे निकलने वाली गैस का अध्ययन करेगा।
2. ChaSTE – यह उपकरण चंद्रमा की सतह पर तापमान संबंधी सभी प्रकार के अध्ययन कर जानकारी एकत्र करेगा।
3. ILSA – इल्सा नाम का यह उपकरण चंद्रमा पर आने वाले भूकंप का अध्ययन करने का काम करेगा।
4. LRA – नासा द्वारा निर्मित यह पेलोड लेजर के माध्यम से धरती से सिग्नलों को बाउंस करेगा, जिसके माध्यम से यह पता लगाया जाएगा कि लैंडर चांद पर कहां उतरा है।
सॉफ्ट लैंडिंग क्या है ?
किसी अंतरिक्ष यान को बिना कोई नुकसान पहुंचाए बहुत धीमी गति से ग्रहों की सतह पर यान को उतरना ही सॉफ्ट लैंडिंग कहलाता है यह इसलिए भी महत्वपूर्ण हो जाती है कि पृथ्वी से हजारों किलोमीटर दूरी पर गमन कर रहे यान पर वैज्ञानिकों का कितना नियंत्रण है और इस मिशन में कितनी अच्छी गुणवत्ता वाली तकनीक का प्रयोग किया गया है।
मिशन चंद्रयान 3 के लिए दक्षिण ध्रुव ही क्यों चुना गया ?
इसका मुख्य कारण है कि आज तक जितने भी देश चंद्रमा पर पहुंचे हैं वे सब भूमध्य रेखा के पास ही उतरे। ध्रुव की तुलना में भूमध्य रेखा पर लैंडिंग करना काफी आसान और सुरक्षित माना जाता है साथ ही यहां सूर्य का प्रकाश भी उपस्थित होता है जिससे विमान में तकनीकी खराबी या बैटरी डिस्चार्ज का खतरा भी काम हो जाता है।
अधिकतर देशों ने भूमध्य रेखा पर चांद की सतह पर पहले से ही अध्ययन कर रखा है जिनमें अमेरिका और रूस के कई मिशन शामिल है चंद्रमा के ध्रुवीय क्षेत्रों में -220 डिग्री सेल्सियस से भी कम तापमान होता है। अतः वैज्ञानिकों का मानना है कि ध्रुवों की चट्टानें अत्यधिक ठंडे तापमान के कारण आज भी उसी स्थिति में होगी जैसी वह अपने निर्माण के समय थी। इनके माध्यम से हम सौरमंडल के बारे में और स्पष्ट जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
इन सभी कारणों से चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतरना महत्वपूर्ण हो जाता है जो कि भारत के चंद्रयान-3 से पहले कोई भी देश नहीं कर पाया था।
चंद्रयान 2 और चंद्रयान-3 में मुख्य अंतर
Chandrayaan 3 India’s Pride : 2019 में लॉन्च किया गया मिशन चंद्रयान-2 असफल रहा था जिसमें हार्डवेयर एवं सॉफ्टवेयर दोनों प्रकार की तकनीक की कमी पाई गई थी। एस सोमनाथ की अध्यक्षता में मिशन चंद्रयान-3 में उन सभी कमियों पर काम करके उन्हें ठीक किया गया था-
1) इसके पैर चंद्रयान-2 से अधिक मजबूत है और नीचे स्पंज भी जोड़ा गया है, जिससे सॉफ्ट लैंडिंग में आसानी हो।
2) चंद्रयान 3 108 किलोमीटर प्रति घंटा की गति से उतरने में सक्षम है।
3) चंद्रयान 2 में लैंडिंग साइट 500×500 मीटर थी जिसे बढ़ाकर 4×2.4 किलोमीटर कर दिया गया है।
4) चंद्रयान-3 में अधिक ईंधन क्षमता है व चारों तरफ सौर पैनल लगाए गए हैं ताकि बैटरी डिस्चार्ज फैलियर से बचा जा सके।
Reason behind train accidents in India
चंद्रयान 2 क्यों फेल हुआ ?
इसरो के चीफ एस सोमनाथ ने बताया कि चंद्रयान-2 के लैंडर को चंद्रमा की सतह से 3 किलोमीटर ऊपर ही अपनी लैंडिंग पोजीशन को निर्धारित करना था लेकिन उसमें लगे पांच थ्रस्ट में से एक ज्यादा पावरफुल था जिस के कारण वह स्टेबल नहीं हो पाया और उसकी लैंडिंग साइट भी काफी छोटी रखी गई थी जिसके कारण लैंडर अपनी लैंडिंग साइट को निर्धारित नहीं कर सका और इसरो ने यान से संपर्क खो दिया इसके कारण यह मिशन फेल हुआ।
Chandrayaan 3 India’s Pride से संबंधित बार-बार पूछे जाने वाले प्रश्न –
1. Chandrayaan 3 India’s Pride की सफलता में सबसे कठिन या डरावना समय कौन सा था?
लैंडिंग से 15 मिनट पहले का वह समय जब 1.68 किलोमीटर प्रति सेकंड की गति से गमन कर रहे विमान की स्पीड को निश्चित अवधि के अंदर जीरो किलोमीटर प्रति सेकंड में बदलना ताकि विमान सॉफ्ट लैंडिंग कर सके।
2. भारत ने अब तक कुल कितने चंद्रयान मिशन किए हैं?
भारत देश ने अब तक कुल तीन चंद्र मिशन किए हैं जिनमें से पहला 22 अक्टूबर 2008, दूसरा 2019 व तीसरा 26 जुलाई 2023 को लांच किया गया था।
3. विश्व में चंद्र अध्ययन पर भारत की सबसे बड़ी सफलता क्या है?
भारत ने चंद्र अध्ययन में दो बड़ी सफलताएं हासिल की है –
चंद्रयान-1 2008 चांद पर पानी की खोज
चंद्रयान-3 2023 दक्षिणी ध्रुव में सॉफ्ट लैंडिंग
4. चंद्रयान 2 ने चंद्रयान-3 की सफलता में कैसे अपनी भूमिका निभाई?
चंद्रयान 2 का ऑर्बिट अभी भी एक्टिव है इसके द्वारा चंद्रयान-3 के लिए सही लैंडिंग साइट का चुनाव किया गया परिणाम स्वरुप यह मिशन सफल हो पाया।
5. चंद्रयान-3 के प्रक्षेपण में कौन सा लांच व्हीकल का उपयोग किया गया है?
इसे सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र श्रीहरिकोटा से LVM3-M4 के माध्यम से प्रक्षेपित किया गया था।
6. चंद्रयान 3 का वजन कितना है?
लेंडर 1750 किलो, रोवर 26 किलो।
7. चंद्रयान-3 ने कुल कितने दिनों तक काम किया?
23 अगस्त को सॉफ्ट लैंडिंग करने के बाद चंद्रयान-3 लगातार 14 दिनों तक काम करता रहा।
8. चंद्रयान-3 में कुल कितनी लागत लगी थी?
ISRO के अनुसार इस मिशन में कुल 615 करोड रुपए खर्च हुए जो एक मूवी के बजट से भी कम है।
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